शैंपू
केश मार्जक या शैम्पू केशों की देखभाल करने वाला एक उत्पाद है, जो साधारणतः चिपचिपा तरल के रूप में होता है, जिसका उपयोग केश को साफ़ करने के लिए किया जाता है। कम सामान्यतः, शैम्पू ठोस बार रूप में उपलब्ध होता है। शैम्पू का उपयोग इसे सिक्त केश में लगाकर, उत्पाद को शिर में मालिश करके और फिर इसे धो कर किया जाता है। कुछ उपयोगकर्ता केश स्थित्युन्नायक के उपयोग के साथ शैम्पू करने का पालन कर सकते हैं।
शैम्पू का उपयोग साधारणतः केश में सीबम के अवांछित ढेर को हटाने के लिए किया जाता है, जिससे केश को अप्रबन्धनीय बना दिया जाता है। शैंपू एक पृष्ठ संक्रियक , सर्वाधिकतः बार सोडियम लौरिल सल्फेट या सोडियम लौरेथ सल्फ़ेट के संयोजन से बनाया जाता है, एक सह-पृष्ठ संक्रियक के साथ, अक्सर जल में कोकामिडोप्रोपाइल बीटाइन होता है। सल्फेट अवयव एक सर्फेक्टेंट के रूप में कार्य करता है, साबुन के समान तेल और अन्य दूषित पदार्थों को फँसाता है।
पशुओं के लिए ऐसे शैम्पू भी हैं जिनमें त्वचा की स्थिति या पिस्सू जैसे परजीवी संक्रमण के इलाज के लिए कीटनाशक या अन्य औषधियाँ शामिल हो सकती हैं।
इतिहास
[संपादित करें]शैम्पू शब्द मूलतः हिंदी शब्द चाँपो से बना है जिसका अर्थ सिर की मालिश (चंपी-जिसे तेल से किया जाता है) है। यह शब्द और अवधारणा दोनों ही ब्रिटेन में औपनिवेशिक काल में भारत द्वारा पेश किये गये थे। यह शब्द और सेवा ब्रिटेन में एक बंगाली उद्यमी शेख दीन महमूद द्वारा 1814 में पेश की गयी, जब उसने अपनी आयरिश पत्नी के साथ, एक शैम्पू स्नान ‘महमूद का भारतीय वाष्प स्नान' के नाम से ब्राइटन इंग्लैंड में खोला था। उसका स्नान तुर्की स्नान, की तरह था जहां ग्राहकों को चंपी या चिकित्सात्मक मालिश एक भारतीय उपचार की तरह दी जाती थी। उसकी सेवा की काफी सराहना की गयी और उसे दोनों जॉर्ज चतुर्थ और विलियम चतुर्थ के लिए, शिम्पू चिकित्सक नियुक्त किया गया। 1900 में, शब्द का अर्थ की मालिश से बदलकर बालों को साबुन लगाना हो गया। इससे पहले आम साबुन को ही बाल धोने के लिए प्रयुक्त किया जाता था। लेकिन बालों में रह गया साबुन बालों को संवारना असुविधाजनक, परेशानी भरा बनाता था साथ ही बाल अस्वस्थ भी लगते थे। शैम्पू के प्रारंभिक चरण के दौरान, अंग्रेज केशसज्जक पानी में घिसा हुआ साबुन मिला कर उबालते थे और फिर इस में बालों को चमक और सुगन्ध देने के लिए जड़ी बूटियों मिलाई जातीं थीं। कैसी हेबर्ट पहले ज्ञात निर्माता हैं जिन्होने पहले शैम्पू का निर्माण किया। पहले साबुन और शैम्पू समान उत्पाद थे, दोनों में पृष्टसक्रियकारक शामिल होते थे जो एक प्रकार का डिटर्जेंट है। आधुनिक शैम्पू 1930 के दशक में अस्तित्व में आया, जो पहला सिंथेटिक (बिना साबुन का) शैम्पू था।
भारत में, बालों की परंपरागत मालिश आज भी आम है और इसके लिए विभिन्न तेल और जड़ी बूटी के फार्मूलों का उपयोग किया जाता है। नीम, शीकाकाई, रीठा, मेहंदी, बेल, ब्राह्मी, मेथी, छाछ, आंवला, एलो, हल्दी और बादाम जिसे चंदन, चमेली, गुलाब और कस्तूरी जैसे कुछ सुगंध घटकों के संयोजन के साथ इस्तेमाल किया जाता है।