चेहरा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चेहरा संज्ञा पुं॰ [फा॰ चेहरह]
१. शरीर का वह ऊपरी गोल और अगला भाग जिसमें मुँह, आँख, माथा, नाक आदि सम्मिलित है । मुखडा । बदन । यौ॰— चेहरा मोहरा = सूरत शकल । आकृति । चेहराशाही = वह रुपया जिसपर किसी बादशाह का चेहरा बना हो । चेहराकुशा = चित्रकार । चेहरानवीश = हलिया लिखनेवाला । चेहराबंदी = हुलिया । मुहा॰— चेहरा उतरना— लज्जा, शोक, चिंता या रोग आदि के कारण चेहरे का तेज जाता रहना । चेहरा जर्द होना = चेहरा सूखना । चेहरे का रंग उतर जाना । उ॰— क्या बताऊँ हाथों के तोते उड गए ।अरे अब क्या होगा सिपहरआरा का चेहरा जर्द हो गया ।— फिसाना॰ भा॰ ३, पृ॰ २९१ । चेहरा तमतमान = गरमी या क्रोध आदि के कारण चेहरे का लाल हो जाना । चेहरा बिगडना = (१) मार खाने के कारण चेहरे की रंगत फीकी पड जाना । (२) निस्तेज या विवर्ण हो जाना । चेहरा बिगाडना = इतना मारना कि सूरत न पहचानी जाय । बहुत मारना । चेहरा भँपना = किसी के मन की बात जेहरे से जान लेना । चेहरा होना = फौज में नाम लिखा जाना । चेहरे पर हवाइयाँउडना = घबराहट से चेहरे का रंग उतर जाना ।
२. किसी चीज का अगला भाग । सामने का रुख । आगा ।
३. कागज, मिट्टी या धातु आदि का बना हुआ किसी देवता, दानव या पशु आदि की आकृति का वह साँचा जो लीला या स्वाँग आदि में स्वरुप बनने के लिये चेहरे के ऊपर पहना या बाँधा जाता है । प्राय:बालक भी मनोविनोद और खेल के ऐसा चेहरा लगाया करते हैं । क्रि॰ प्र॰—उतारना ।— बाँधना । — लगाना । मुहा॰ — चेहरा उठान = नियमपूर्वक पूजन आदि के उपरांत किसी देवी या देवता का चेहरा लगाना । विशेष— हिंदुओं का नियम है कि जिस दिन नृसिंह, हनुमान या काली आदि देवी देवताओं का चेहरा उठाना (लगाना) होता है, उस दिन वे दिन भर उस देवी या देवता के नाम से व्रत या उपवास करते हैं; और तब संध्या समय विधिपूर्वक उस देवी या देवता का पूजन करने के उपरांत चेहरा उठाते हैं ।