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आत्मन्

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दर्शन में, आत्मन् एक व्यक्ति की अपनी चिन्तनशील चेतना है। चूँकि आत्मन् उसी विषय का सन्दर्भ है, यह संदर्भ आवश्यक रूप से व्यक्तिपरक है। आत्म-या स्वत्व -होने का भाव, यद्यपि, व्यक्तिपरकता के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए। [1]

सन्दर्भ

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  1. Zahavi, D. (2005). Subjectivity and Selfhood: Investigating the First-person Perspective. New York: MIT.