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अवलोकितेश्वर

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इंडोनीशिया के जावा द्वीप के एक मंदिर में अवलोकितेश्वर की हाथ में कमल लिए एक मूर्ती

अवलोकितेश्वर महायान बौद्ध धर्म सम्प्रदाय के सबसे लोकप्रिय बोधिसत्वों में से एक हैं। उनमें अनन्त करुणा है और धर्म-कथाओं में कहा गया है कि बिना संसार के समस्त प्राणियों का उद्धार किये वे स्वयं निर्वाण लाभ नहीं करेंगे। कहा जाता है कि अवलोकितेश्वर अपनी असीम करुणा में कोई भी रूप धारण कर के किसी दुखी प्राणी की सहायता के लिए आ सकते हैं।[1] महायान बौद्ध ग्रंथ सद्धर्मपुण्डरीक में 'अवलोकितेश्वर बोधिसत्व' के माहात्म्य का चमत्कारपूर्ण वर्णन मिलता है। चीनी धर्मयात्री फ़ाहियान ३९९ ई॰ में जब भारत आए थे तब उन्होंने सभी जगह अवलोकितेश्वर की पूजा होते देखी। [उद्धरण चाहिए]

भगवान्‌ बुद्ध ने बराबर अपने को मानव के रूप में प्रकट किया और लोगों को प्रेरित किया कि वे उन्हीं के मार्ग का अनुसरण करें। अवलोकितेश्वरों में महत्वपूर्ण सिंहनाद की उत्तर मध्यकालीन (लगभग ११वीं सदी) असाधारण सुन्दर प्रस्तरमूर्ति लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित है।[2] अवलोकितेश्वर को अक्सर एक कमल का फूल पकड़े हुए दर्शाया जाता है और कथाओं में उनकी 'कमल-प्रकृति' का अक्सर वर्णन मिलता है जो किसी भी वातावरण में प्राणियों को सौंदर्य, सुगंध और उद्धार की ओर ले जाती है।[3]

चित्रावली

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इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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सन्दर्भ

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  1. The Silk Road: trade, travel, war and faith Archived 2016-04-26 at the वेबैक मशीन, Susan Whitfield, British Library, Serindia Publications, Inc., 2004, ISBN 978-1-932476-13-2, ... Avalokitesvara, the embodiment of compassion, is one of the most popular of the Mahayana bodhisattvas. The ability of Avalokitesvara to take any form in order to come to the aid of sentient beings is described in chapter twenty-five of the Lotus Sutra ...
  2. Ultimate Healing: The Power of Compassion[मृत कड़ियाँ], Lama Zopa Rinpoche, Ailsa Cameron, Wisdom Publications, 2001, ISBN 978-0-86171-195-6, ... The original practice contained the mantras of Sitatapatra (White Umbrella Deity) and Singhanada (Lion's Roar Avalokiteshvara) ...
  3. The origins of Oṃ maṇipadme hūṃ: a study of the Kāraṇḍavyūha sūtra, Alexander Studholme, SUNY Press, 2002, ISBN 978-0-7914-5389-6, ... The symbol of the lotus continues to appear throughout the Kararidavyuha Sutra. Avalokitesvara himself is repeatedly described in terms of his 'lotus' qualities ...