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हंस

विक्षनरी से
हंस

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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हंस संज्ञा पुं॰ [सं॰] ^

१. बत्तख के आकार का एक जलपक्षी जो बड़ी बड़ी झीलों में रहता है । विशेष—इसकी गरदन बत्तख से लंबी होती है और कभी कभी उसमें बहुत सुंदर घुमाव दिखाई पड़ता है । यह पृथ्वी के प्रायः सब भागों में पाया जाता है और छोटे छोटे जलजंतुओं और उदि्भद पर निर्वाह करता है । यद्यपि हंस का रंग श्वेत ही प्रसिद्ध है, पर आस्ट्रेलिया में काले रंग के हंस भी पाए जाते हैं योरप में इसकी दो जातियाँ होती हैं —एक मूक इंस' दूसरी 'तूर्य हंस' । मूक हंस बोलते नहीं, पर तूर्य हंस की आवाज बड़ी कड़ी होती है । अमेरिका में भूरे और चितकबरे हंस भी होते हैं । चितकबरे हंस का सारा शरीर सफेद होता है, केवल सिर और गरदन कालापन लिए लाखी रंह की होती है । भारतवर्ष में हंस सब दिन नहीं रहने हैं । वर्षाकाल में उनका मानसरोवर आदि तिब्बत की झीलों में चला जाना और शरत्काल में लौटना प्रसिद्ध है । यह पक्षी अपनी शुभ्रता और सुंदर चाल के लिये बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध है । कवियों में तथा जनसाधारण में इसके मोती चुँगने और नीर-क्षीर-विवेक करने (दूध मेंसे पानी अलग करने) का प्रवाद चला आता है जो कल्पना मात्र है । युरोप के पुराने कवियों में भी ऐसा प्रवाद था कि यह पक्षी बहुत सुंदर राग गाता है, विशेषतः मरते समय । किसी शब्द के आगे लगकर यह शब्द श्रेष्ठता का वाचक भी होता है, जैसे, कुलहंस ।

२. सूर्य । उ॰—(क) हंस बंस, दशरथ जनक, राम लषन से भाइ । —तुलसी (शब्द॰) ।(ख) हंस तुरंगम-हंस रबि, हंस मराल, सुछंद । हंस जीव कह कहत कवि परम हंस गोविंद ।—अनेकार्थ॰, पृ॰ १६० ।

हंस चौपड़ संज्ञा पुं॰ [सं॰ हंस+हिं॰ चौपड़] एक प्रकार का पुराना चौपड़ का खेल जो पासों से खेला जाता है । विशेष—इसकी तख्ती में६२ घर होते थे । एक ६३ वाँ घर केंद्र में होता था, जो जीत का घर होता था । तख्ती के प्रत्येक चौथे और पाँचवें घर में एक हंस का चित्र होता था । खेलनेवाले का पासा जब हंस पर पड़ता था, तब वह दूनी चाल चल सकता था ।