Dugadda
Dugadda | |
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city | |
Country | India |
State | Uttarakhand |
District | Pauri Garhwal |
Elevation | 932 m (3,058 ft) |
Population (2001) | |
• Total | 2,690 |
Languages | |
• Official | Hindi |
• General | Hindi, Garhwali |
Time zone | UTC+5:30 (IST) |
Dugadda or Dogadda(दुगड्डा) is a small city and a municipal board in Pauri Garhwal District in the state of Uttarakhand, India. Dugadda is a small city which is surrounded by mountains and situated at the bank of Khoh
Geography
Dogadda is located at 29°48′N 78°37′E / 29.80°N 78.62°E.[1] It has an average elevation of 932 metres (3,058 feet).
Demographics
As of 2001[update] India census,[2] Dogadda had a population of 2690. Males constitute 54% of the population and females 46%. Dogadda has an average literacy rate of 78%, higher than the national average of 59.5%: male literacy is 82% and, female literacy is 74%. In Dogadda, 13% of the population is under 6 years of age.
History
Before emergence of Kotdwara, Dogadda was the hub of commercial activities of Garhwal, as in 1953, Kotdwara got connected via railway, which resulted in major businesses shifting base to the city, a position it continues to hold till date.
दोगड्डा
२९.८० डिग्री उत्तर व ७८.६२ डिग्री पूर्व समुद्र तल से १८१५ मे सुदर्शन शाह के समय उनके करीबी दरबारी के साथ उनके पुत्र ..... गंगाराम मिश्र के पुत्र काशीराम के पुत्र धनीराम का जन्म १८६९ में सकदा में हुआ राजस्व अभिलेखों में गढ़ राज्य के समय से मौजा बहेड़ी गाँव ...... दोगड्डा के नाम से आज तक अंकित, १८५० के बाद मिश्र परिवार द्वारा स्थापित हनी के बाद अस्तित्व मे आया , गढ़ मंडल की पौराणिक मंडी व्यापारिक, rajnaitikराजनैतिक,सामाजिक सांस्कृतिक रूप से १८वी सदी के अंत तक अपनी किशोरे अवस्था प्राप्त कर ली थी. इस नगरी को मंजरित करने में लैंसडाउन छावनी की स्थापना और कोटद्वार में रेल का पहुचना रहा दो गाड़ ( अविरल प्रवाहित लघु सरिताओं के) संगम पर स्थित इस नगर का नाम गढ़ प्रयाग होना चाहिए था, किन्तु या तो तात्कालिक चिंतको विचारोको ने सोच समझ कर अथवा दो गाड़ (लंगूरगाड़ और शीलगाड़) के मध्य होने से सामान्य जन भाषा मे इसका नाम दोगड्डा या दुगड्डा कब प्रचालन में आया इसका सटीक उत्तर तो उपलब्ध नहीं है किन्तु ५० के दशक में इसका नाम दुगड्डा के नाम से प्रख्यात हो गया . १९वी सदी के प्रथम दशक के पूर्वार्ध तक बहेरी ग्राम या दुगड्डा क़स्बा सम्पूर्ण रूप से राजस्व अभिलेखों में उस समय के दरबारी मिश्र परिवार के नाम अंकित था और काशीराम जी मिश्र को भाई बटवारे में विरासत में मिला – इनके उत्तराधिकारी धनीराम मिश्र जी
१८वी सदी के अंत के साथ अपनी किशोरावस्था से युवावस्था में पदार्पण करती यह छोटी सी नगरी जहाँ अपनी व्यापारिक गतिविधि के कारण गढ़वाल मंडल की प्रमुख व्यापारिक मंडी कहलाई वहीँ स्वतंत्रता संग्राम की अलख भी सर्वप्रथम इस ही दुगड्डा नगर ने ही जगाई , सामाजिक –सांस्कृतिक केंद्र के रूप में गजेन्द्र नैथानी ने पहला प्रिंटिंग प्रेस लगाकर १९०३ में साप्ताहिक समाचार पत्र का सञ्चालन कर मिश्र परिवार के साथ मिल कर अंग्रेजो के खिलाफ जन जागरण का बिगुल बजाया rajna दुगड्डा में जब व्यापारिक , सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति चि८न्गरि से शोला बन कर संपूर्ण गढ़वाल मंडल को रोशन कर रही थी ठीक उसी वक्त में वर्ष १९०० में अपने बड़े भाई से उपेक्षित १७ वर्षीय श्री राम नैथानी नामक युवक धनाढ्य बनने की चाहत में दुगड्डा की व्यापारिक गतिविधियों में प्रवेश कर गया . १९०० तक बहेड़ी ग्राम का मालिकाना हक रखने वाले धनाड्य मिश्र परिवार के उत्तराधिकारी सामाजिक , सांस्कृतिक rajnaitik राजनैतिक , विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम में सलिप्त थे , तो युवा किशोर अपने एक सूत्रीय कार्यक्रम –श्रम प्रधान नैतिक अर्थ सम्पन्ता के सिद्धान्त को लेकर व्यापारिक गतिशीलता में सक्रिय रहा १९०५ आते आते स्वतंत्रता संग्राम गतिविधियों को रफ़्तार देने के लिए धनीराम मिश्र ने राष्ट्रीय होटल खोला एस कारण मिश्र परिवार को धन की आवश्यकता पडने लगी .
१९०७ में कृपा राम मिश्र मनहर कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गये , जगमोहन सिंह नेगी , फ़तेह सिंह रावत , राम प्रसाद नौटियाल , सुल्तान सिंह भंडारी , विष्णु सिंह रावत , छ्वान सिंह , मायाराम बर्थवाल - की अगली पीढ़ी के रूप में किशनदयाल अग्रवाल , भीष्म चन्द्र, गोविन्द राम अग्रवाल शामिल हूए, यह होटल १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन तक सक्रिय रहा .
१९३० में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित नाथो सिंह रावत के नाम पर विख्यात नाथोपुर में , उनके ही द्वितीय पुत्र क्रन्तिकारी भवानी सिंह के साथ चन्द्रसेखर आज़ाद ने यहाँ प्रवास किया . वह वृक्ष जिसके तने पर आ ज़ाद ने निशाना साधने का अभ्यास किया (व् दूसरो को भी सिखाया ) उसके अवशेष आज भी ‘स्मृति वृक्ष’ के रूप में उस दौर की याद दिलाते हैं , यह विदाम्बाना ही है कि इतने वैज्ञानिक विकल्पों के बाद भी उस वृक्ष को बचाया नहीं जा सका और वह अवशेष के रूप में ही आने वाली पीढ़ी के लिए उपलब्ध है . १९०३ में व्यापार से धनार्जित कर एक भवन का निर्माण कराया धीरे धीरे मिश्र परिवार से दुगड्डा का ७० % भाग खरीद लिया . चार पुत्र एवं चार पुत्रियों के पिता श्री राम को अंग्रजो ने राय साहेब पदवी से सम्मानित किया , और वे सपरिवार लंगूर गाड के स्य्राम्य तट पर बसे जुगाणा गाँव में निवास करने लगे . १९०० से १९५० तक का समय दुगड्डा का स्वर्णिम युग था. यहाँ से चार पारियों में २० हजार खच्चर पूरे में गढ़वाल से रसद या अन्य आवश्यक सामग्री पहुचाई जाती थी , ६०वे दशक में सड़को के विस्तार से यह संख्या २००० और ७० के दशक में सैकड़ो में आ गयी .
शैक्षिणिक क्षेत्र में ३० के दशक में राय साहेब पंडित श्री राम नैथानी द्वारा स्थापित डी ए वी इन्टर कॉलेज १९७५ में राजकीय इन्टर कॉलेज हो गया , सरकार के हस्तांतरण के समय सर्वेश्वर दत्त नैथानी प्रबंधक एवं प्रख्यात इतिहासकार एवं विद्वान् डॉ शिव प्रसाद डबराल ‘चारण’ प्रधानाचार्य थे . कृपाराम फुलोरिया प्रथम ब्लाक प्रमुख रहे . १९६५ व १९७५ तक खंड विकास कार्यालय , आई टी आई , भूमि संरक्षण कार्यालय , फ़ूड कारपोरेशन के गोदाम स्थापित हो चुके थे. नव ज्योति सहितियिक संस्था , युवा संगम , ज्योति कला संगम , आदि ने सांस्कृतिक क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की . पत्रकार मंगत राम अग्रवाल लगभग चार दशक तक पी टी आई और विभिन्न राष्ट्रीय समाचार पत्रों में कार्यरत रहे . कैलाश बंसल आज भी “अंतर्ज्वाला” नामक पत्रिका का संपादन एवं सञ्चालन कर रहे हैं . डॉ शिव प्रसाद डबराल ‘चारण’ की कर्मभूमि एवं उमराव सिंह रावत की तपोभूमि दुगड्डा को १९७० से १९९० तक अवकाश प्राप्त खंड विअश अधिकारी श्री भगवती प्रसाद जोशी ने अपनी हिंदी-गढ़वाली सािहत्यक साधना से प्रान्त की सबसे छोटी नगर पालिका को गौरान्वित किया , “ एक ढंा ग की आत्म कथा’’ इनका ख्याति प्राप्त उपन्यास है . ईशमोहन नैथानी, बेनी माधव ध्यानी , मनोहर लाल गर्ग , राम प्रसाद बडोला , आदि ने साहित्य के क्षेत्र में २००० तक सक्रिय रखा . डॉ अख्तर अली की “मैन ईटर’’ भारत विख्यात हुई . किशन दयाल अग्रवाल , फ़तेह सिंह रावत , सर्वेश्वर दत्त नैथानी, श्याम लाला मधवाल , श्रीमती उमा जुयाल , दीपक बडोला , कुमारी विमला सिंह नगर पालिका के अध्यक्ष रहे . दीपक बडोला नौटफाइङ एरिया के अध्यक्ष रहे और वर्तमान नगर पालिका के अध्यक्ष भी हैं . श्री श्याम लाल मधवाल , बृजमोहन मनराल ओमप्रकाश कैंथोला ने विशिस्थ खिलाडियों के रूप में जाने जाते रहे है . श्री श्याम लाल मधवाल दिवाकर काला एन सी सी के कैप्टेन और कैलाश मोहन नैथानी , भोपाल सिंह मनमोहन सिंह , धीरज सिंह, पुष्कर मोहन नैथानी सीनियर अंडर ऑफिसर रहे . डॉ नारायण सिंह रावत , डॉ लक्ष्मी प्रसाद जुयाल एवं डॉ राज मोहन सिंह रावत ने चिकित्सा जगत में नाम किया . १९०७ में शुरू हुई राम लीला ८० के दशाक्तक गढ़वाल की प्रमुख राम लीला मानी जाती रही . मंदिरों में १८८७ से लब्ध प्रतिष्ठित सीधी देने वाला सिध्बली मंदिर ,४९वे दशक राधाकृषण मंदिर , ७० के दशक से हनुमान मंदिर से जनता पुण्य एवं आशीष लाभ लेती आ रही है . कमल बिष्ट एवं गुड देवा ने प्रसिधी प्राप्त की नृत्य गीत संगीत के क्षेत्र में दुगड्डा ने विशिस्ट पहचान बनायीं और एक पूरा मोहल्ला इसके लिए प्रसिद्ध भी रहा .
पुष्कर मोहन नैथानी
Education
Dogadda has two Government Inter Colleges previously it was D.A.V.Inter college established by raisahib pandit Shr Ram Naithani who was prominent personality of his time. Dr.Shive Prasad Dabral The historian of Uttarakhand Ka Itihas ( 22 Volumes) was the Principal of the college in 1975 Pt. Sarweshwr Dutt Naithani was The manager who transferred the college to Govt.(one for girls and one for boys) and one Government Industrial Training Institute (ITI), as well as four private primary level English medium schools.
References
- ^ Falling Rain Genomics, Inc - Dogadda
- ^ "Census of India 2001: Data from the 2001 Census, including cities, villages and towns (Provisional)". Census Commission of India. Archived from the original on 16 June 2004. Retrieved 1 November 2008.